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लेखनी प्रतियोगिता -12-Apr-2023 ययाति और देवयानी

भाग 58 
महारानी अशोक सुन्दरी की चिंताओं का कोई अंत नहीं था । याति का मन न तो अनगिनत सुन्दरियां चुरा सकी थीं और न ही प्रासाद का विलासितापूर्ण, ऐश्वर्यशाली जीवन उन्हें उनके लक्ष्य से डिगा सका था । ना ही चित्रकला और ललितकलाऐं उनका मन सांसारिक भोगों में लगा सकीं थीं तथा ना ही संगीत की स्वर लहरियां उन्हें जगत के प्रति आसक्त कर सकी थीं । उन्हें पहले भी एकान्त प्रिय था और आज भी एकान्त प्रिय है । उन्हें ऊषाकाल का प्राकृतिक संगीत पसंद है । लहरों पर सवार सूर्य किरणों की अठखेलियां उनके मन को सुहाती हैं । चिड़ियों की चिंचियाहट में उन्हें जीवन के दर्शन होते हैं । फूलों की सरसराहट में उन्हें परम पिता परमेश्वर की प्रार्थना सुनाई देती है । उन्हें न तो राजप्रासाद की बहुमूल्य वस्तुऐं चाहिए और न ही विलासिनियों की काम चेष्टाऐं उनके मन में जुगुप्सा उत्पन्न करती हैं । उन्हें इन अलौकिक सुन्दरियों के कोमल अंगों के मदमाते सौन्दर्य से कोई सरोकार नहीं है और न ही इनकी 64 कलाओं में ही उनकी रुचि है । महारानी राजकुमार याति की ऐसी अवस्था देखकर सोचने लगीं कि ऐसा क्या किया जाये जिससे याति अध्यात्म का रास्ता छोड़कर विलासितापूर्ण जीवन का आनंद उठाये ? बहुत सोचने के पश्चात भी अशोक सुन्दरी को कुछ भी नहीं सूझ रहा था । 

अपने ही विचारों में खोई हुई महारानी न जाने कब तक ऐसे ही गुमसुम बैठी रहतीं , किन्तु महाराज नहुष ने दबे पांव आकर उनकी आंखों पर अपना हाथ रखकर उनकी विचार श्रंखला को ऐसे भंग कर दिया जैसे तालाब के पानी में कोई कंकर मारकर तालाब के पानी की शांति भंग कर देता है । 

"किस गहन चिंतन में डूबी हैं हस्तिनापुर की महारानी जी, जरा हमें भी तो पता चले" ? सम्राट नहुष ने महारानी की चिबुक ऊपर उठाते हुए उनकी गहरी आंखों में डूबते हुए पूछा "लगता है कि सभी बच्चों के गुरुकुल चले जाने से बहुत एकाकीपन महसूस हो रहा है महारानी जी को" ? महारानी को छेड़ते हुए महाराज ने कहा । "यदि ऐसा है तो और बच्चे पैदा करने पर विचार किया जा सकता है । क्यों महारानी जी, कैसा विचार है ये" ? शरारत से चेहरा चमकने लगा था महाराज का । 

महाराज को यकायक अपने सम्मुख पाकर महारानी अशोक सुन्दरी हतप्रभ रह गईं और अचकचाकर पूछ बैठीं "सम्राट आप ! आप कब आये ? यूं चोरों की तरह आना कबसे सीख लिया है आपने महाराज ? आप तो ऐसे न थे । फिर ये आदत कहां से सीख ली आपने ? आपके अचानक धावा बोलने से मैं तो डर ही गई थी । एक बात पूछने की धृष्टता कर सकती हूं क्या महाराज कि अंत:पुर में ऐसे अचानक आया जाता है क्या" ? आंखों से प्रेम रस बरसाते हुए और साथ में महाराज को बरजते हुए महारानी ने ऐसे कहा जैसे आसमान से बारिश की अमृत रूपी हलकी हलकी बौछारें हो रही हों और बीच बीच में बिजली भी चमक रही हो । 

महाराज नहुष ने अपनी दोनों बाहें महारानी के गले में डालकर उनकी नशीली आंखों में गहरे उतरते हुए कहा "ओह, लगता है कि महारानी जी किसी के खयालों में डूबी हुई थीं । जरा हमें भी तो ज्ञात होना चाहिए कि वह भाग्यवान कौन है जिसने हमारी महारानी जी के इस नन्हे से हृदय पर अपने प्रेम का प्याला कुछ इस तरह उंडेला है कि हमारी प्यारी महारानी जी उसके प्रेम के नशे में ऐसी डूब गई हैं कि उन्हें यह भी पता नहीं चला कि यहां के सम्राट उनके प्रासाद में आकर उनका भावों में खोया हुआ चेहरा देखते रहे और उस अनजाने व्यक्ति से बरबस ही ईर्ष्या करते रह गये" । 

"सम्राट को ईर्ष्या करने की क्या आवश्यकता है ? सम्राट के पास तो इतना वैभवशाली साम्राज्य है जितना तो देवराज इंद्र के पास भी नहीं है । और सुन्दरियों की तो बात ही क्या है ! सम्राट के लिए तो एक से सुन्दर एक युवती भगवान भोलेनाथ से वरदान मांगती हैं कि उन्हें सम्राट का कुछ पल का ही सही, सानिध्य मिल जाये । बेचारी महारानी का क्या है ? उस 6 पुत्रों वाली अधेड़ महिला को अब कौन पुरुष चाहेगा ? पुरुषों को तो ताजा कलियां ही पसंद आती हैं पूर्ण विकसित पुष्प उन्हें नहीं सुहाते । कोई विक्षिप्त पुरुष ही होगा जो 6 पुत्रों वाली महारानी को अपने स्वप्न में देखेगा । महारानी तो इतनी सौभाग्यशाली है कि उसे सम्राट जैसा पति मिला । सम्राट से बढ़कर और कौन ऐसा पुरुष इस त्रैलोक्य में है जिसकी कामना महारानी करेंगी ? महारानी को तो सम्राट ने अपना प्रेम रूपी वरदान ऐसा दिया है कि उसकी सुगंध से वे दिन भर सुगंधित रहती हैं । 

महाराज, ये तो भारत की स्त्रियां होती ही ऐसी हैं कि वे अपने पिया के अतिरिक्त अन्य किसी पुरुष को स्वप्न में भी देखना पसंद नहीं करती हैं । उनके लिए उनका पति ही परमेश्वर होता है । ये तो पुरुषों का ही स्वभाव है जिनका एक स्त्री से मन नहीं भरता है । उन्हें एक नहीं, अपितु अनेक पत्नियां चाहिए । अनेक पत्नियों से भी जब उनकी कामेच्छाऐं पूर्ण नहीं होती हैं तो उन्हें गणिकाऐं, सेविकाऐं सब चाहिए । इनके अतिरिक्त भी वे और न जाने किन किन से प्रणय निवेदन करते रहते हैं । क्यों सही कहा ना हमने" ? महारानी ने महाराज की बांहों में झूला झूलते हुए और अपनी कातिल निगाहों से महाराज का हृदय छलनी करते हुए कहा । 

"बातें बनाना तो कोई आपसे सीखे प्रिये ! आपने मेरे प्रश्न का तो कोई समुचित प्रत्युत्तर दिया नहीं अपितु समस्त पुरुषों को आपने कटघरे में खड़ा कर दिया । मैं आपसे एक बात पूछने की धृष्टता कर सकता हूं क्या ? अपने कमलनयनों से पुरुषों के हृदय बिद्ध कर क्षत विक्षत क्यों करती हैं ये कंचन कामिनियां ! इतना ही नहीं , पहले अपने मृगनयनों से हृदय को घायल करती हैं फिर एक कातिल मुस्कान फेंककर पुरुषों को प्रेम के मैदान में पूर्ण रूपेण धराशायी कर देती हैं । यदि उनके बचने की कोई भी संभावना शेष रह जाती है तो ये कमनीया स्त्रियां अपनी मतवाली चाल से उन्हें पूर्णतया हताहत कर देती हैं । अब आप ही बताइये महारानी जी, कि पुरुष उस सौन्दर्या से जरा सा प्रेम रस की आकांक्षा कर लेता है तो क्या त्रुटि करता है" ? महारानी का हाथ अपने हृदय से लगाकर महाराज बोले । 

"महाराज, अब आपकी और मेरी प्रणय करने की आयु नहीं रही है । अब तो हमारा याति 18 वर्ष से अधिक आयु का हो गया है । उसका मन इस "श्रंगार प्रासाद" में नहीं लग रहा । वह अंदर ही अंदर घुटन महसूस करता है । ये प्रासाद उसे काट खाने को दौड़ता है । सुंदरियां उसे नागिन जैसी लगती हैं और भोग विलास की सामग्री "आसक्ति का मायाजाल" प्रतीत होती हैं । मुझे डर लगता है महाराज कि कहीं ऐसा ना हो कि एक दिन मेरा याति ये राजप्रासाद छोड़कर वन को चला जाये ? यदि ऐसा हो गया तो मैं बच नहीं पाऊंगी, महाराज" ? चिंता से कांपते हुए महारानी ने कहा 

"आप निश्चिंत रहें महारानी, ऐसा बिल्कुल नहीं होगा । यदि आप उचित समझें तो याति का विवाह महिष्मती की राजकुमारी चित्रांगदा के साथ संपन्न करवा दिया जाये  ! कल ही महिष्मती के महाराज ने यह प्रस्ताव भिजवाया है । यदि राजकुमार का विवाह राजकुमारी चित्रांगदा के साथ संपन्न हो जाये तो इससे बेहतर और कोई रिश्ता हो ही नहीं सकता है हमारे युवराज के लिए । इस बारे में क्या विचार हैं आपके, हमें भी इस पर खुलकर बात करनी चाहिए" । महाराज नहुष ने दिलासा देते हुए कहा । 

महाराज और महारानी अभी बातें कर ही रहे थे कि कुछ दासियां दौड़ती हुईं महाराज के पास आईं और बोलने लगीं "गजब हो गया महाराज ! राजकुमार याति अपने कक्ष में नहीं हैं । हमने सारा श्रंगार प्रासाद देख लिया है महाराज । बाहर उपवन , उद्यान सबमें उनकी तलाश करवाई किन्तु वे हमें कहीं भी दिखाई नहीं दिये" । कहते कहते वे हांपने लगीं थीं । 

महारानी अशोक सुन्दरी ने जब यह समाचार सुना तो वे वहीं भूमि पर चक्कर खाकर गिर पड़ीं और मूर्छित हो गईं । 

श्री हरि 
23.7.2023 

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5 Comments

RISHITA

02-Sep-2023 09:48 AM

Amazing

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madhura

01-Sep-2023 10:47 AM

Nice

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Anjali korde

29-Aug-2023 11:07 AM

Nice

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